नई दिल्ली।आजकल लोगों की जीवनशैली शिथल हो गई है, जिसके कारण मोटापा बढ़ रहा है। ऑफिस में घंटों बैठकर काम करना, जरूरत की हर चीज़ घर पर ही मंगा लेना, और इंस्टैंट फूड की आदतों ने पारंपरिक चुस्त जीवन और स्वस्थ आहार को पीछे छोड़ दिया है। इसका प्रभाव स्वास्थ्य पर भी दिखने लगा है, लेकिन फिर भी लोगों को इनके गंभीर परिणामों का अभी एहसास नहीं हुआ है, जो जानलेवा हो सकते हैं। मोटापा समाज में इस कदर व्याप्त है कि लोग इसे कोई खतरा ही नहीं मानते हैं। लेकिन असलियत यह है कि हर साल मोटापे से जुड़ी बीमारियों की वजह से 28 लाख लोग मौत का शिकार हो जाते हैं। भारत में 2.6 करोड़ लोग मोटापे से पीड़ित हैं, इसलिए इस गंभीर समस्या को ध्यान में लाना बहुत आवश्यक है।
डॉ. कार्तिक दामोदरन, डायरेक्टर, डिपार्टमेंट ऑफ वैस्कुलर एंड इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी, एमआईओटी इंटरनेशनल मोटापे से जुड़ी पाँच बीमारियों के बारे में बता रहे हैंः
• डायबिटीज़ः भारत में 10.1 करोड़ लोग डायबिटीज़ से पीड़ित हैं। बढ़े हुए पेट वाले 27 प्रतिशत भारतीय पुरुषों को डायबिटीज़ होने का बहुत अधिक जोखिम है। यह स्थिति तब होती है, जब खून में शुगर का स्तर बहुत ज्यादा हो जाता है। इसलिए बढ़ा हुआ पेट स्वास्थ्य की कई गंभीर समस्याओं की शुरुआत कर सकता है।
• हृदय रोगः 40 से ज्यादा बीएमआई वाले पुरुषों को हार्ट अटैक, स्ट्रोक या अन्य हृदय रोगों का जोखिम लगभग तीन गुना ज्यादा होता है। अगर कमर के चारों ओर वजन बहुत ज्यादा बढ़ रहा है, तो उसकी वजह से हृदय को खून पहुँचाने वाली आर्टरी अवरुद्ध हो सकती हैं, जिससे हृदय की अनेक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
• उच्च रक्तचापः भारत में 15 से 54 साल के लगभग 34.1 प्रतिशत लोगों को हाईपरटेंशन है। बढ़े हुए पेट के कारण कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम पर दबाव पड़ता है, जिसके कारण रक्तचाप अनियंत्रित हो जाता है। हाईपरटेंशन का इलाज न कराया जाए, तो यह बहुत गंभीर स्थिति उत्पन्न कर सकता है।
• ऑस्टियोआर्थ्राईटिसः ऑस्टियोआर्थ्राईटिस जोड़ों का सबसे आम विकार है, जिससे हाथ, घुटने, कूल्हे, पीठ और गर्दन प्रभावित होते हैं। केवल 10 पाउंड वजन बढ़ने से ही हर कदम में घुटनों पर 30 से 60 पाउंड दबाव बढ़ जाता है। यह दबाव काफी ज्यादा होता है। इसलिए मोटापे से पीड़ित लोगों को घुटनों का आर्थ्राईटिस होने की संभावना पाँच गुना ज्यादा होती है, जिससे प्रदर्शित होता है कि वजन का जोड़ों के स्वास्थ्य पर कितना गहरा प्रभाव होता है।
• बढ़ी हुई प्रोस्टेट (बिनाईन प्रोस्टेटिक हाईपरप्लेसिया)ः 51 से 60 साल के 50 प्रतिशत पुरुषों को यह समस्या होती है और 80 साल से ज्यादा उम्र के 90 प्रतिशत पुरुष इससे पीड़ित होते हैं। भारत में मोटापा इतना आम है कि 2.6 करोड़ पुरुष इससे पीड़ित हैं, लेकिन लोगों को प्रोस्टेट पर इसके प्रभाव की जानकारी कम है। मोटापा शरीर में एक चेन रिएक्शन शुरू करता है, जिसके कारण पेट पर दबाव बढ़ने, हार्मोन का असंतुलन होने, नर्वस सिस्टम पर ज्यादा दबाव पड़ने, सूजन और ऑक्सिडेटिव तनाव की स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं। इन सब कारणों से बीपीएच होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है।
प्रोस्टेट की समस्या कितनी आम या गंभीर है, इसके अनुसार इलाज के विकल्प समझना भी जरूरी है। आम धारणा है कि बीपीएच का इलाज केवल सर्जरी से ही होता है, लेकिन अब इसके लिए कम चीरफाड़ वाले विकल्प भी उपलब्ध हैं। इनमें से एक मिनिमली इन्वेज़िव ट्रीटमेंट विकल्प प्रोस्टेट आर्टरी एम्बोलाईज़ेशन (पीएई) है। पीएई की प्रक्रिया एक इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट (आईआर) द्वारा जाँघ के ऊपरी हिस्से (या कलाई) से रक्तनलिका में एक ट्यूब डालकर की जाती है। फिर एक्सरे की मदद से इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट (आईआर) द्वारा ट्यूब को उस रक्तनलिका में पहुँचाया जा रहा है, जो प्रोस्टेट को खून की आपूर्ति कर रही है। इसके बाद इस रक्तनलिका में ट्यूब की मदद से छोटे मनके डाले जाते हैं। इन मनकों की वजह से रक्तनलिका अवरुद्ध हो जाती है, और प्रोस्टेट को पहुँचने वाला खून कम हो जाता है, जिससे यह सिकुड़ जाती है। मोटापे से पीड़ित मरीजों को जब उपरोक्त विभिन्न मेडिकल समस्याएं हों, तो बीपीएच होने पर जनरल एनेस्थेसिया के साथ उनकी सर्जरी बहुत जोखिमपूर्ण हो जाती है। ऐसे मरीजों के लिए पीएई उत्तम है क्योंकि यह लोकल एनेस्थेसिया देकर की जाती है।
स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहकर और इन उपायों की जानकारी के साथ पुरुष प्रोस्टेट बढ़ने पर होने वाली समस्याओं की रोकथाम कर सकते हैं। प्रोस्टेट को स्वस्थ रखने के लिए नियमित मेडिकल जाँच और समय पर उचित इलाज व देखभाल बहुत आवश्यक है।
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