देहरादून: उत्तराखंड भाषा संस्थान की ओर से पिछले दिनों वितरित उत्तराखंड साहित्य गौरव पुरस्कार में कथित गड़बड़झाले और पुस्तक अनुदान की पात्रता सीमा बढ़ाए जाने का मामला फिर तूल पकड़ गया है। भाषा विभाग उत्तराखंड के सचिव युगल किशोर पंत ने मामले का संज्ञान लेते हुए सात बिंदुओं पर उपसचिव से रिपोर्ट तलब की है।
उत्तराखंड भाषा संस्थान की ओर से वर्ष 2024 के लिए पिछले दिनों साहित्य गौरव पुरस्कार दिए गए थे, जिसमें कथित रूप से गड़बड़झाले का आरोप लगाया गया था। आरोप था कि मदन मोहन डुकलान को जहां दूसरी बार यह पुरस्कार दिया गया है, वहीं महेंद्र ठकुराठी और उनके पुत्र डॉ. पवनेश ठकुराठी का भी पुरस्कार के लिए चयन किया गया। महेंद्र ठकुराठी को बहादुर बोरा बंधु पुरस्कार दिया गया, जिसके लिए मात्र तीन लोगों ने आवेदन किया था, जबकि उनके पुत्र डॉ. पवनेश ठकुराठी को दिए गए गिरीश तिवारी गिर्दा पुरस्कार के लिए एकमात्र ही आवेदन आया था और उसी पर पुरस्कार दे दिया गया था। कुछ साहित्यकारों ने इस पर मानक को लेकर सवाल पूछे, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। चंद्रकुंवर बर्त्वाल पुरस्कार के लिए तो 10 लोगों ने आवेदन किए, लेकिन एक भी पुरस्कार लायक नहीं समझा गया। पंजाबी साहित्य में तो स्थिति और दयनीय थी। पंजाबी साहित्य के लिए दिए जाने वाले सरदार पूर्ण सिंह पुरस्कार के लिए तो एक भी आवेदन नहीं आ सका। इससे संस्थान की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े होने स्वाभाविक थे। नारी वंदन और भैरव दत्त धूलिया पुरस्कार को लेकर भी आपत्ति जाहिर की गई।
इसके अलावा, पत्र में आरोप लगाया गया है कि कुछ लोगों को लाभ दिलाने के उद्देश्य से पुस्तक अनुदान की पात्रता आय सीमा पांच लाख से बढ़ाकर 15 लाख रुपए सालाना की गई है, जबकि अनुदान योजना उन साहित्यकारों के लिए थी, जो आर्थिक रूप से कमजोर होने के चलते अपनी पुस्तक प्रकाशित नहीं करा पाते थे।