पुरातन काल से निकल कर आधुनिक स्वरूप लेने वाले खेल पिट्टू खिलाड़ियों के बीच लोकप्रिय हो रहा है। इसी लोकप्रियता को चरम तक पहुंचने और सुदूर क्षेत्रों तक खेल की पहचान बनाने के लिए उत्तराखंड में राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता का आयोजन होने जा रहा है। पिट्टू फेडरेशन ऑफ इंडिया ने नेशनल जूनियर पिट्टू चैंपियनशिप की जिम्मेदारी उत्तराखंड को सौंपी है। इस चैंपियनशिप में करीब 24 राज्यों के 700 खिलाड़ी और ऑफिशियल प्रतिभाग करते नजर आएंगे।
उत्तराखंड पिट्टू एसोसिएशन के सचिव अश्वनी भट्ट के मुताबिक फेडरेशन ने जून में नेशनल चैंपियनशिप कराने का मौका दिया है। राजधानी देहरादून चैंपियनशिप का भव्य आयोजन होगा। इसकी तैयारी शुरू कर दी गई है। उनका कहना है कि काफी कम समय में उत्तराखंड के खिलाड़ियों ने पिट्टू में शानदार प्रदर्शन किया है। हाल ही में इंदौर में हुए नेशनल सब जूनियर चैंपियनशिप में उत्तराखंड की बालक वर्ग की टीम ने रजत हासिल किया।
जानिए क्या है आधुनिक पिट्टू व नियम
आधुनिकता के दौर में एक और जहां खेलों का स्वरूप बदला है। वहीं, गली मोहल्लों में खेले जाने वाला पिट्टू खेल भी आधुनिक रूप ले चुका है। सामूहिक रूप में खेले जाने वाले इस खेल के नियम और खिलाड़ियों की संख्या भी तय की गई है। अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरह से खेले जाने वाले पिट्टू को पिट्टू फेडरेशन ऑफ इंडिया ने एकरूपता देते हुए नियम बनाए है। नियमों के अनुसार एक टीम में अधिकतम 10 खिलाड़ी हो सकते हैं। इनमें से छह खिलाड़ी अंदर खेल सकते है। चार खिलाड़ी चेंज के लिए होते हैं। इसके लिए कोर्ट का साइज भी तय किया किया गया है। कोर्ट के चौड़ाई 14 मीटर और लंबाई 26 मीटर होती है। जिसमें एक सेंटर लाइन होती है। उसके दोनों साइड तीन-तीन मीटर की दूरी पर डेंजर लाइन होती है। जिसके अंदर डिफेंडर टीम के खिलाड़ी का जाना वर्जित रहता है। वह तभी उसके अंदर जा सकता है, जब बॉल उस क्षेत्र में स्थिर अवस्था में आ जाती है। एक साइड की डेंजर लाइन के एक मीटर दूरी पर स्ट्राइक जोन होता है, जहां से खिलाड़ी पिट्टू को बिखेरने का प्रयास करता है। पिट्टू सेट में अलग-अलग आकार के सात पिट्टू होते हैं। जिसमें नीचे से छह पिट्टू 3.5 सेंटीमीटर के होते हैं। सबसे ऊपर वाला पिट्टू सात सेंटीमीटर का होता है। पिट्टू सेट की कुल ऊंचाई 28 सेंटीमीटर होती है। पिट्टू सेट के सभी पिट्टू में नंबर लिखे होते है, जिन्हें नीचे से ऊपर की ओर लगाना होता है। तभी अंक मिलते हैं। इसमें बॉल को पिट्टू पर मारने के लिए भी नियम है। पिट्टू फोड़ने के लिए खिलाड़ी अपने घुटने नहीं मोड़ सकता और हाथों को कंधे से पीछे नहीं ले जा सकता है। अगर खिलाड़ी आपस में पास देते हुए पांच पास पूरे कर लेते हैं तो उन्हें एक बार बॉल मैदान से बाहर करनी होती है। पिट्टू बनाने पर टीम को पांच अंक दिए जाते हैं। खेल चार पारियों में खेला जाता है। प्रत्येक पारी का समय पांच मिनिट निर्धारित रहता है। इसमें जिस बॉल का प्रयोग किया जाता है वो रबर की बनी होती है, जिसका वजन 75 ग्राम से अधिक और 60 ग्राम से कम नहीं होना चाहिए।
विश्व के प्राचीनतम सामूहिक खेल पिट्टू के दूसरी राष्ट्रीय जूनियर प्रतियोगिता के देव भूमि में आयोजन का अवसर प्राप्त होने बड़ी उपलब्धि है। फेडरेशन हमें जो मौका दिया है उसपर खरा उतरने के प्रयास करेंगे। पौराणिक ग्रंथों में वर्णित यह खेल देवभूमि में ऊंचे आयाम स्थापित करेगा ऐसी आशा है। देवभूमि के संस्कृति के अनुरूप खिलाड़ियों और ऑफिशियल्स का स्वागत किया जाएगा।
*पीसी पांडे, अध्यक्ष उत्तराखंड पिट्टू एसोसिएशन