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20 साल के शांतनु से कैसे मिले थे रतन टाटा? फिर बन गए एक दूसरे के अच्छे दोस्त रोचक है कहानी... पढ़े

इस दोस्ती ने अब मेरे अन्दर जो खालीपन पैदा किया है, मैं अपनी बाकी जिंदगी उसे भरने की कोशिश में बिता दूँगा. प्यार के लिए दुःख की किमत चुकानी पड़ती हैं. अलविदा मेरे प्यारे लाइटहाउस”

रिपोर्ट: मधु पांडे 

प्यार के लिए दुख की किमत चुकानी पड़ती हैं…….रतन टाटा के जाने पर उनके दोस्त के शब्द

कहते है “दोस्ती की कोई उम्र नहीं होती, ये तो वो एहसास हैं जो दुनिया के सारे बंधनों से परे है” और एक सच्चे दोस्त को खोने की कीमत वही समझ सकता है जिससे दोस्ती में कभी उम्र, जाति और पैसा नहीं देखा

9 अक्टूबर 2024 की रात भारत के अनमोल रत्न रतन टाटा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया और सबके दिलों में अपनी एक अलग छाप छोड़ गए, पूरे देश मे उदासी छायी हुई है, कोई भी इस दुख से उभर नहीं पाया है परंतु एक ऐसा शख्स है जिसके दुःख की हम कल्पना भी नहीं कर सकते, हम बात कर रहे है रतन टाटा के बेहद करीबी एवं भरोसेमंद दोस्त शांतनु नायडू की जो अपने दोस्त के अंतिम संस्कार में हर जगह आगे दिखे, भारी दिल एवं नम आँखों के साथ अपने दोस्त को अंतिम विदाई दीI शांतनु रतन टाटा से करीब 55 साल छोटे थे पर दोनों की दोस्ती ऐसी थी जैसे हमउम्र के लोगों में भी नहीं होती।

कौन है शांतनु

शांतनु नायडू का जन्म 1993 में पुणे में हुआ था. साल 2014 में शांतनु ने सावित्रीबाई फुले विश्वविधालय से इंजीनियरिंग की जिसके बाद शांतनु ने 2016 में कॉर्नेल जॉनसन स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन से मास्टर्स किया. पढाई पूरी होने के बाद शांतनु ने अपने करिअर की शुरुआत टाटा एलेक्सी में बतौर ऑटोमोबाइल डिजाइन इंजीनियर की।

सोशल मीडिया के मुताबिक शांतनु टाटा ट्रस्ट के साथ जून 2017 से जुड़े हैं और वो रतन टाटा के असिस्टेंट भी रहे हैं.

कैसे हुई थी रतन टाटा मुलाकात और दोस्ती?

शांतनु एवं रतन टाटा दोनों की पशु प्रेम उनकी दोस्ती का कारण बनी. साल 2014 में दोनों की पहली मुलाकात हुई थी, रात के अंधेरे मे तेज रफ्तार की गाड़ियों से सड़क पर चलने वाले कुत्तों को चोट लग जाती थी, इसी से बचाने के लिए नायडू “मोटोपाॅज” नाम की संस्था बनाई जिसमें वो रिफ्लेक्टिव कॉलर बनाते थे और फिर सड़क पर घूमने वाले कुत्तों के गले में बाँध जिसपर पर लाइट पड़ते ही वो चमकने लगती और कुत्ते एक्सीडेंट से बच जाते, इस तरकीब ने रतन टाटा को बहुत प्रभावित किया था, जिसके बाद उन दोनों की पहली मुलाकात हुई उस वक़्त शांतनु सिर्फ 20 साल के थे यहाँ से दोनों की दोस्ती की शुरुआत हुई और फिर दोस्ती गहरी हो गयी.

Goodfellows के मालिक है शांतनु

इतनी कम उम्र में ही शांतनु ने नौकरी के साथ साथ goodfellows नाम का अपना स्टार्ट-अप बनाया जिसके लिए उन्होंने रतन टाटा से फंड मांगे, गुडफेलोज बुजुर्ग लोगों को साथी मुहैया कराती है जो उन्हें सपोर्ट करने के साथ छोटे मोटे कामों में उनकी मदद करते हैं इससे बुजुर्ग लोगों का अकेलापन दूर होता है और उनके साथी को मिलती है अनमोल अनुभव की सीख.

दोस्त के लिए किया इमोशनल पोस्ट

रतन टाटा के निधन के बाद शांतनु ने अपने सबसे प्यारे दोस्त को खो दिया और वो बहुत दुखी हैं , अपने दुख को उन्होंने लिंक्डइन पर एक इमोशनल पोस्ट के जरिए बयां किया जिसमें उन्होंने रतन टाटा के साथ अपनी एक पुरानी फोटो डाली है और लिखा “इस दोस्ती ने अब मेरे अन्दर जो खालीपन पैदा किया है, मैं अपनी बाकी जिंदगी उसे भरने की कोशिश में बिता दूँगा. प्यार के लिए दुःख की किमत चुकानी पड़ती हैं. अलविदा मेरे प्यारे लाइटहाउस”

 

संवाददाता : मधु पाण्डे

 

 

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