नई दिल्ली। वृद्धों को स्वास्थ्य की अनेक समस्याएं होती हैं, जिन्हें लोग अक्सर बढ़ती उम्र का हिस्सा मानकर नजरंदाज कर देते हैं। उदाहरण के लिए हर 3 में से 1 वृद्ध को बार-बार मूत्रत्याग करने की इच्छा होती है। बढ़ती उम्र में लोगों को बार-बार बाथरूम जाते हुए देखा गया है। वैसे तो यह एक सामान्य आदत है, लेकिन यह बढ़ी हुई प्रोस्टेट का शुरुआती संकेत भी हो सकता है?
बढ़ी हुई प्रोस्टेट क्या है?
डॉ. कार्तिक दामोदरन, डायरेक्टर, डिपार्टमेंट ऑफ वैस्कुलर एवं इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी, एमआईओटी इंटरनेशनल ने बताया कि बढ़ी हुई प्रोस्टेट को बिनाईन प्रोस्टेटिक हाईपरप्लेसिया (बीपीएच) भी कहा जाता है। इस स्थिति में पुरुषों की प्रजनन प्रणाली में प्रोस्टेट ग्रंथि सामान्य से ज्यादा बड़ी हो जाती है। 51 से 60 साल के बीच लगभग 50 प्रतिशत पुरुषों और 80 वर्ष से अधिक उम्र के 90 प्रतिशत पुरुषों को यह समस्या होती है। प्रोस्टेट ग्रंथि मूत्रमार्ग के चारों ओर होती है। प्रोस्टेट बढ़ने पर ब्लैडर पर दबाव पड़ता है, जिससे मूत्रमार्ग दब जाता है, और ब्लैडर की माँसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं, जिससे मूत्र पर असर पड़ता है। इस स्थिति में मूत्रत्याग करने में कठिनाई होती है क्योंकि बढ़ी हुई प्रोस्टेट मूत्र को ब्लैडर से बाहर निकलने में आंशिक रूप से रुकावट डालती है।
कारणः समस्या को नजरंदाज करने से स्वस्थ प्रोस्टेट को नुकसान पहुँच सकता है
प्रोस्टेट का बढ़ना इतना आम है कि यदि पुरुषों की उम्र लंबी होती है, तो इसका होना लगभग निश्चित है। हालाँकि इस स्थिति को बढ़ाने वाले कारणों को समझकर इसे रोका जा सकता है। वृद्धों की प्रोस्टेट क्यों बढ़ती है, यह जानने से इसकी रोकथाम के उपाय करने में मदद मिलती है। इसलिए प्रोस्टेट को स्वस्थ रखने के बारे में आवश्यक जानकारी नीचे दी जा रही है।
• मोटापाः भारत में मोटापा बहुत आम है। यहाँ लगभग 2.6 करोड़ पुरुष मोटापे से पीड़ित हैं। कम लोगों को ही पता होता है कि मोटापे से प्रोस्टेट का स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। मोटापे से शरीर में एक चेन रिएक्शन शुरू होती है, जिसकी वजह से पेट पर दबाव बढ़ता है, हार्मोन का असंतुलन होता है, नर्वस सिस्टम ज्यादा सक्रिय हो जाता है, तथा सूजन और ऑक्सीडेटिव तनाव होता है। इनके कारण बिनाईन प्रोस्टेटिक हाईपरप्लेसिया (बीपीएच) होने की संभावना भी बढ़ जाती है।
• चिंताः चिंता और बीपीएच का गहरा संबंध है। जब ज्यादा तनाव होता है, तब शरीर में एक हार्मोन कोर्टिसॉल का उत्सर्जन होता है, जो प्रोस्टेट एवं अन्य अंगों में सूजन बढ़ा सकता है। इस सूजन की वजह से बीपीएच हो सकता है। भारत में 82 प्रतिशत लोगों को हल्के से लेकर गंभीर तनाव होता है, जिसकी वजह से उन्हें प्रोस्टेट बढ़ने का जोखिम ज्यादा होता है।
• गतिहीन जीवनशैलीः आज के व्यस्त जीवन में डेस्क जॉब के साथ जरूरत की हर चीज के लिए डोरस्टेप सेवाएं मिल जाती हैं, लेकिन इसका हमारे स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है। व्यस्त दिनचर्या के कारण स्वस्थ आहार और चुस्त जीवनशैली पीछे छूट जाते हैं। गतिहीन जीवनशैली का प्रोस्टेट पर भी विपरीत असर होता है। क्या आपको मालूम है कि सप्ताह में केवल 2 से 3 घंटे की वॉकिंग से प्रोस्टेट बढ़ने का जोखिम 25 प्रतिशत कम किया जा सकता है? चुस्त रहना न केवल संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, बल्कि प्रजनन स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक है।
रोकथाम के उपायः आपकी अपेक्षा से ज्यादा आसान
प्रोस्टेट का ख्याल रखना बहुत आसान है। इसके लिए अपने आहार में फला, सब्जियों और स्वस्थ फैट को शामिल करें। बेरी, ब्रोकोली, सिट्रस फल, नट्स और हल्दी फायदेमंद हैं। अगर किसी को पहले से बीपीएच है, तो खराब आहार से बीपीएच बिगड़ सकता है। इसलिए प्रोसेस्ड फूड, शुगर और बहुत ज्यादा कार्ब्स का सेवन न करें। साथ ही मदिरासेवन, रेड मीट, डेयरी और कैफीन के सेवन में भी संयम रखें। नियमित शारीरिक गतिविधि भी स्वास्थ्य में सुधार लाकर प्रोस्टेट को बढ़ने से रोक सकती है। इसके अलावा, कोलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर, और खून में शुगर के स्तर को भी नियंत्रण में रखें।
बढ़ी हुई प्रोस्टेट के लिए इलाज के विकल्प
आम धारणा है कि बीपीएच के इलाज का एकमात्र तरीका सर्जरी है। लेकिन इसका इलाज कोई भी बड़ा चीरा लगाए बिना और हॉस्पिटल में ज्यादा लंबे समय रुके बिना ही हो सकता है। बढ़ी हुई प्रोस्टेट के लिए सर्जरी या सामान्य निश्चेतक दिए बिना ही मिनिमली इन्वेज़िव विधि, प्रोस्टेट आर्टरी एम्बोलाईज़ेशन (पीएई) द्वारा इलाज संभव है। पीएई की प्रक्रिया एक इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट (आईआर) द्वारा की जाती है, जिसमें जांघ के ऊपरी हिस्से (या कलाई) से रक्तवाहिनी से होते हुए एक छोटा ट्यूब (कैथेटर) शरीर में डाला जाता है। इसके बाद आईआर द्वारा एक्सरे की मदद से यह ट्यूब उस रक्तवाहिनी में पहुँचाया जाता है, जिससे प्रोस्टेट को आपूर्ति मिल रही होती है। फिर ट्यूब द्वारा छोटे मोती रक्तवाहिनी में पहुँचाए जाते हैं, जो प्रोस्टेट को पहुँचने वाले खून की आपूर्ति को कम कर देते हैं, जिसकी वजह से यह सिकुड़ जाती है। इससे मूत्रनली पर दबाव कम हो जाता है, और मूत्र त्याग करने में होने वाली कठिनाई दूर हो जाती है।
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