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विपक्ष का कहना हैं कि ये कानून संविधान विरोधी हैं ओर अगर UCC लागू किया जाता हैं तो, सरकार के इस फैसले को न्यायालय में चैलेंज करा जाएगा। 

रिपोर्ट: शिवानी सोलंकी 

देवभूमि उत्तराखंड में जल्द ही UCC यानी समान नागरिक संहिता लागू होने जा रहीं हैं। सोमवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में राज्य सचिवालय में हुई कैबिनेट बैठक के दौरान समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की मैनुअल ( नियमावली) पर मुहर लगा दी गई हैं। जिसके बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ऐलान किया हैं कि UCC जल्द ही इसी महीने 26 जनवरी से लागू हो सकता हैं। इस तरह उत्तराखंड आजादी के बाद यूसीसी लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा। आपको बता दें की उत्तराखंड से पहले गोआ देश इकलौता राज्य हैं जहां समान नागरिक संहिता लागू हैं, जो 1867 की पुर्तगाली नागरिक संहिता के तहत लागू किया गया था।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा हैं कि “हमने 2022 के विधान सभा चुनाव के दौराने जनता से वादा किया था कि हम सरकार बन जाने के बाद यूसीसी का बिल लाएंगे। और हम यूसीसी का बिल लेकर आए। ड्राफ्ट कमिटी ने ड्राफ्ट बनाया, इस बिल को पारित किया गया, राष्ट्रपति की मुहर लगी और इसके साथ ये एक्ट बन गया। एक्ट बनने के बाद प्रशिक्षण की जो प्रक्रिया हैं वो लगभग पुरी हो गई हैं। सभी चीजों का परीक्षण करने के बाद हम जल्द ही तारीखों की घोषणा करेंगे। ”

आपको बता दें कि जून 2022 में रिटायर्ड जज रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की 5 सदस्य की समिति बनाई गई थी। 2 फरवरी 2024 को विशेषज्ञों ने अपना ड्राफ्ट सरकार को सौंपा। 7 फरवरी 2024 को यूसीसी बिल को उत्तराखंड विधानसभा में पारित किया गया, जिसके बाद 12 मार्च 2024 को राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद ये बिल एक्ट में तब्दील हो गया और इसकी अधिसूचना(नोटिफिकेशन) जारी कर दी गईं।

 

आइए जानते हैं क्या हैं यूसीसी ( समान नागरिक संहिता)?

अगर हम सीधे शब्दों में इसे समझे तो यूसीसी का मतलब है “एक देश एक कानून”। सभी समुदाय के लोगों को एक ही नियम और कानून का पालन करना होगा। भारत में अभी क्रिमिनल लॉ यानी आपराधिक कानून सभी के लिए एक समान है लेकिन सिविल लॉ यानी नागरिक कानून सभी धार्मिक समुदाय के लिए अलग हैं। यूसीसी लागू करने का मुख्य उद्देश्य यहीं हैं कि सभी धार्मिक समुदाय के लोगों के लिए एक ही कानून व्यवस्था हो। यूसीसी के तहत शादी, तलाक, उत्तराधिकारी (प्रॉपर्टी इन्हेरिटेंस), बच्चा गोद लेने, जैसे मुद्दों को लेके सभी धार्मिक समुदायों को एक ही कानून का पालन करना होगा। हमारे संविधान में सभी धर्मों और जाती के अपने अपने निजी कानून हैं, जिन्हें पर्सनल लॉस कहते हैं जैसे हिंदुओं के लिए हिन्दू सक्सेशन एक्ट, मुस्लिम के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉस, ईसाई पारसी और यहूदियों के लिए इंडियन सक्सेशन एक्ट और इंटर कास्ट और इंटर रिलीजियन मैरिज के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट। लेकिन यूसीसी लग जाने के बाद इन पर्सनल लॉस को खत्म कर दिया जायेगा। उत्तराखंड में भी यूसीसी के यही प्रावधान हैं हालांकि उत्तराखण्ड में आदिवासी समुदाय को यूसीसी के दायरे से बाहर रखा गया हैं।

उत्तराखंड में यूसीसी लागू होने के बाद क्या क्या बदलाव और संशोधन करे जाएंगे । आइए जानते है विस्तार में। 

उत्तराखंड में यूसीसी लागू होने पर शादी, तलाक, संपत्ति के बंटवारे, बच्चा गोद लेने और यहां तक कि लिव इन रिलेशनशिप से जुड़े मुद्दे को लेके नियम बनाए गए है। उत्तराखंड सरकार का कहना है कि यूसीसी के आने से महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया जायेगा। यूसीसी लागू होने के बाद कई नए कानून बनाए गए हैं जैसे –

1) यूसीसी लागू होने के बाद शादी शुदा जोड़ों को शादी का रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य हैं।

2) सभी धर्मों के लोगों को तलाक लेने का एक समान नियम होगा। पर्सनल लॉ के नियमों को रद्द कर दिया जाएगा।

3) एक से ज्यादा शादी यानी बहुविवाह करने पर रोक लगाई जाएगी। पति–पत्नी को कानूनी तौर से अलग होना पड़ेगा तभी उन्हें दूसरी शादी करने का अधिकार दिया जाएगा।

4) सभी धर्मों के लोगों को बच्चा गोद लेने का अधिकार दिया जायेगा लेकिन कोई भी दूसरे धर्म के बच्चों को गोद नहीं ले सकता।

5) मुस्लिम धर्म यानी इस्लाम की कई प्रथाओं पर रोक लगाई जाएगी। इस्लाम की हलाला और इद्दत जैसी प्रथाओं पर रोक लगाई जाएगी ।

6) मां बाप की संपति में बेटा और बेटी दोनों का समान अधिकार होगा चाहे आप किसी भी धार्मिक समुदाय से आते हो।

इसके अलावा लिव इन रिलेशनशिप को लेकर भी यूसीसी के तहत कई नए प्रावधान निकाले गए हैं।

लिव इन रिलेशनशिप का अर्थ है जब कोई भी लड़का या लड़की बिना शादी करे एक साथ एक ही छत के नीचे विवाहित जोड़े की तरह रहते हैं। यूसीसी कानून लागू होने से अगर कोई भी लड़का लड़की अगर लिव इन रिलेशनशिप में रहना चाहते हैं , तो उन्हें अपने लिव इन रिलेशनशिप का पंजीकरण/रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य है। पंजीकरण के लिए आधार कार्ड होना आवश्यक हैं। इसके साथ 18 से 21 साल के जोड़ों को माता पिता की सहमति का एक पत्र भी देना होगा। अगर लिव इन रिलेशनशिप से किसी को बच्चा हो जाए तो उसे शादी शुदा के जोड़े से हुए बच्चे का अधिकार मिलेगा।

राज्य सरकार ने रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को आसान और सुगम बनाने के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और पोर्टल तैयार किया है। जिसकी मदद से नागरिक आसानी से घर बैठे अपने मोबाइल से अपना पंजीकरण कर सकते हैं। राज्य सरकार ने रजिस्ट्रेशन के लिए CSC (कॉमन सर्विस सेंटर) को भी मंजूरी दी हैं। CSC के कार्यकर्ता, पर्वतीय और दूर दराज के क्षेत्रों में जहां इंटरनेट की सुविधाएं नहीं हैं, वहां घर घर जाकर लोगों को पंजीकरण की सुविधाएं प्रदान कराएंगे। ग्रामीण क्षेत्रों में भी रजिस्ट्रेशन की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। ग्रामीण क्षेत्रों में रजिस्ट्रेशन से जुड़े कार्यों के लिए ग्राम पंचायत विकास अधिकारी को सब–रजिस्ट्रार के रूप में नियुक्त किया गया हैं। इसके अलावा नागरिकों को रजिस्टर करने आधार कार्ड का विकल्प दिया गया हैं और ई–मेल और SMS के जरिए लोग अपने रजिस्ट्रेशन से जुड़े आवेदन की जानकारी ले सकते हैं।

BJP सरकार इस पूरे मामले के समर्थन में हैं और धामी कैबिनेट यूसीसी लागू करने की प्रक्रिया को तेज़ करने में जुटीं हैं। लेकिन कोई नया कानून लाया जाए और विपक्ष उसके विरोध में न हो ऐसा तो हो नहीं सकता । तो आइए जानते हैं कि विपक्ष का इस पूरे मामले को लेके क्या कहना हैं।

यूसीसी के कानून को लागू करने की बात से ही समाज दो गुटों में बंट गया हैं। इस घोषणा से उत्तराखंड और देश में सियासत तेज़ हो गई हैं। जहां कई लोग इसके समर्थन में है वहीं दूसरी और एक ऐसा समुदाय भी हैं जो इस कानून का बहिष्कार कर रहा हैं। यूसीसी कानून से विभिन्न धार्मिक समुदाय के लोगों के बीच विवाद शुरू हो गया हैं। जहां उत्तराखण्ड के हिन्दू समुदाय के लोग इस नए कानून के पक्ष में हैं वहीं अधिकतर मुसलमान इस कानून को संविधान विरोधी बता रहे है और इस फैसले पर अपनी आशंका जाता रहे हैं।

विपक्ष का कहना हैं कि ये कानून संविधान विरोधी हैं ओर अगर UCC लागू किया जाता हैं तो, सरकार के इस फैसले को न्यायालय में चैलेंज करा जाएगा।

All India Muslim Jamaat (AIMJ) के अध्यक्ष “मौलाना शाहबुद्दीन रजवी , का कहना हैं कि “UCC से कोई विकास नहीं होने वाला हैं। ये समाज को आगे तोड़ने वाला हैं। सरकार को इस पर दुबारा से विचार करना चाहिए। उन्होंने आगे बताया कि संविधान ने कहा है कि सबकी राय लेने के बाद UCC लागू किया जाना चाहिए लेकिन इस फैसले में मुस्लिम, अनुसूचित जाति, आदिवासी , जैन, बौद्ध और अन्य समुदाय का मशवरा नहीं लिया गया है।”

रेहान अख्तर कासमी जो एक मुस्लिम स्कॉलर है उन्होंने भी अपनी राय देते हुए कहा है कि “इस कानून में कोई समानता नहीं दिख रही हैं। अगर आदिवासी को अलग कर दिया गया हैं तो ये कानून कहा से समानता की बात कर रहा हैं।”

उत्तराखंड मुस्लिम संगठन के अध्यक्ष नईम अहमद ने यूसीसी की नियमावली पर विरोध जताया और कहा कि “इसे चुनाव के दौरान लाना आचार संहिता का उल्लंघन हैं। उन्होंने बीजेपी को देश विरोधी बताया और कहा कि ये फैसला संविधान के विरुद्ध हैं इसलिए हम इसका विरोध करते हैं और इसे आगे कोर्ट में चैलेंज करेंगे। ”

(ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने धामी सरकार के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया जताई हैं और उन पर निशाना साधते हुए कहा कि “आप इसे यूसीसी कैसे कह सकते हैं अगर आप इसमें बस मुसलमानों की शादी,तलाक और प्रोपर्टी से जुड़ी प्रथाओं पर रोक लगा रहे हैं । यूसीसी में अगर आप आदिवासी समुदाय को अलग रख रहे हैं और हिन्दू मैरिज एक्ट और हिन्दू सक्सेशन एक्ट पर कोई बदलाव नहीं हो रहा हैं तो इसे यूसीसी नहीं कह सकते हैं। उन्होंने ये भी कहा कि UCC बिल वक्फ बोर्ड को खत्म करने के लिए और वक्फ की प्रॉपर्टी को लूटने के लिए लाया जा रहा हैं। उन्होंने ये भी कहा कि आप यूसीसी की बात करते हो लेकिन अगर आप हिंदू धर्म से किसी और धर्म में परिवर्तित होना चाहते हैं तो उसके लिए आपको अनुमति लेनी पड़ेगी। ओवैसी ने आगे ये भी कहा कि जिस तरीके से उन्होंने CAA का विरोध किया था उसी संकल्प के साथ वो UCC का विरोध करेंगे।

अब आगे क्या होगा ये तो यूसीसी लागू होने के बाद ही पता चलेगा। फिलहाल के लिए धामी कैबिनेट यूसीसी को लागू करने की ठान चुकी हैं। मुख्यमंत्री ने बताया कि यूसीसी को लागू करने की प्रक्रिया लगभग पुरी हो चुकी हैं , जल्दी ही यूसीसी को लागू कर दिया जायेगा और इसी महीने 10 दिन के अंदर–अंदर राज्य में यूसीसी लागू करने का ऐलान कर दिया गया हैं।

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