रिपोर्ट : मधु पांडे
भारत मे चल रहे महाकुंभ की आज हर कोई बात कर रहा हैं और महाकुंभ में आय नागा साधु हर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं, माथे पर जटाए, शरीर पर भस्म और आँखों में तेज लिए नागा साधु अपने हठयोग में लगे रहते है, इनका जीवन दूसरे साधुओं की तुलना मे अत्यंत कठिन होता हैं और इनका पूरा जीवन काल अध्यात्म को समर्पित होता है, जब शैव परम्परा यानि भगवान शिव के उपासकों की स्थापना की गयी, तब 8वीं शदी में आदि शंकराचार्य ने अखाड़ा प्रणाली की स्थापना की और इसी के तहत सनातन धर्म के रक्षा के लिए शस्त्र और शास्त्र दोनों में निपुण नागा साधुओं को तैयार किया गया, नागा साधु धर्म रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं इसलिए इन्हें धर्म रक्षक भी कहा जाता हैं|
महाकुंभ हिन्दू धर्म के लिए किसी भी महापर्व से बढ़कर माना जाता है, ये 144 सालो में एक बार आयोजित किया जाता हैं और हर व्यक्ति इसे अपने जीवन मे सिर्फ एक बार ही देख पाता हैं, ऐसे मे जो महाकुंभ में शामिल होने वाले नागा साधु धर्म के लिए सबसे ज्यादा समर्पित माने जाते हैं
कैसा होता है नागा साधु का जीवन
नागा साधुओं का एक रहस्य माना जाता है जो हमारे और आपके सोच से परे हैं इनका जीवन आम लोगों के जीवन से काफी अलग होता है
, इनके पास कोई भौतिक वस्तु यानी घर, गाड़ी, पैसा, कपड़े इत्यादि कुछ नहीं होती हैं, ये सिर पर जटाए रखते हैं, शरीर पर भस्म लगाते हैं, जो दिखाता है की नागा साधु सांसारिक मोह माया से दूर हैं, दुनिया मे इनका कोई रिश्ता नहीं होता ये अपने परिवार व हर रिश्ते को त्याग कर नागा साधु बनते हैं
कैसे बनते हैं नागा साधु
नागा साधु का सम्बन्ध शैव परम्परा से हैं सनातन धर्म की रक्षा के लिए ये खुद को संसार के मोह माया से छुड़ाकर अपने आप को धर्म के प्रति समर्पित कर देते हैं
महाकुंभ के दौरान अलग अलग अखाड़ों में नागा साधु बनने की प्रक्रिया अपनायी जाती हैं और 13 अखाड़ों में से सिर्फ 7 अखाडे ही नागा साधु बनाते हैं, इसकी प्रक्रिया 12 साल लंबी होती हैं और इस दौरान वो एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते, कुम्भ मेले में अंतिम प्रण के दौरान ये उस लंगोट को भी त्याग देते है और जीवन नग्न रहते हैं.
अपना पिंडदान स्वयं करते है नागा साधु
जब कोई भी व्यक्ति अखाडे में नागा साधु बनने के इरादे से आता है तो सबसे पहले उसकी जांच पड़ताल की जाती हैं जिसमें बाद उसे लंबे समय तक ब्रह्मचारी के रूप मे जीवन व्यतित करना होता हैं जिसके बाद उसे महापुरुष और अवधूत का दर्जा दिया जाता है. इसकी अंतिम प्रक्रिया महाकुंभ के दौरान पूरी होती हैं, जहां वो खुद का पिंडदान करते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता हैं की जबतक कोई व्यक्ति अपना पिंडदान नहीं करता हैं तबतक वो सांसारिक जीवन से मुक्ति नहीं पा सकता, पिंडदान करने के साथ एक जीवन का समापन तो वही दूसरे जीवन यानी नागा साधु का जन्म होता हैं
नागा साधु किसकी पूजा करते हैं?
नागा साधु वो होते हैं जो सांसारिक जीवन त्यागकर भगवान शिव की भक्ति में लीन हो जाते हैं. नागा साधु पूर्णरूप से ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और सांसारिक सुखों से दूर हो जाते हैं. नागा साधु शिवजी के नाम पर तपस्या करते हैं और योग-ध्यान में लीन रहते हैं
नागा साधु के रहस्य
1.नागा साधुओं का मानना है कि व्यक्ति निर्वस्त्र दुनिया में आता है और यह अवस्था प्राकृतिक है, इसलिए नागा साधु जीवन में कभी भी कपड़े नहीं पहनते हैं और निर्वस्त्र रहते हैं.
2. नागा साधु दिन में सिर्फ एक बार ही भोजन करते हैं और वे भोजन भी भिक्षा मांग करते हैं. नागा साधु को दिन में 7 घरों से भिक्षा मांगने की इजाजत है. अगर उन्हें किसी दिन इन 7 घरों से भिक्षा नहीं मिलती है, तो उन्हें भूखा ही रहना पड़ता है.
3. नागा साधु ठंड से बचने के लिए तीन प्रकार के योग करते हैं. साथ ही, नागा साधु अपने विचारों और खानपान पर भी संयम रखते हैं. कठोर तपस्या, सात्विक आहार, नाड़ी शोधन और अग्नि साधना करने के कारण नागा साधुओं को ठंड नहीं लगती है.
4. नागा साधुओं का कोई विशेष स्थान या घर भी नहीं होता है. ये कहीं भी कुटिया बनाकर अपना जीवन व्यतीत करते हैं. सोने के लिए भी नागा साधु किसी बिस्तर का इस्तेमाल नहीं करते हैं, बल्कि हमेशा जमीन पर सोते हैं.
5. नागा साधु तीर्थयात्रियों द्वारा दिए जाने वाला भोजन ही ग्रहण करते हैं. इनके लिए दैनिक भोजन का कोई महत्व नहीं होता है और न ही अन्य किसी सांसारिक चीज का महत्व होता है. नागा साधु केवल सात्विक और शाकाहारी भोजन ही खाते हैं.
6.भोलेनाथ की भक्ति में लीन रहते हुए नागा साधु 17 श्रृंगार करने में विश्वास रखते हैं, जिनमें भभूत, चंदन, रुद्राक्ष माला, ड्डूल माला, डमरू, चिमटा और पैरों में कड़े आदि शामिल हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, नागा साधु के 17 श्रृंगार शिवभक्ति का प्रतीक है.